वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण का किसानो और मजदूरो पर प्रभाव बताईये?
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वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है, जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था अन्य देशो की अर्थव्यवस्थाओं के साथ घुल मिल जाती है सीमाओं पर लगने वाले शुल्क मे भारी कमी होती है, जिसके कारण भारी मात्रा मे वस्तुओं, सेवाओ और मानवपूँजी का आदान-प्रदान किया जाता है। वैश्वीकरण ने सम्पूर्ण विश्व को एक गाँव मे परिवर्तित कर दिया है।

एडवर्ड हरमन के अनुसार :

वैश्वीकरण सीमाओं के आस-पास कम्पनियों के विस्तार की एक सक्रिय प्रक्रिया है, तथा साथ ही पार सीमा सुविधाओं और आर्थिक सम्बन्धों की एक संरचना भी है, जिसका निरंतर विकास हो रहा है। तथा यह जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे परिवर्तित हो रही है

वैश्वीकरण की विशेषताए : वैश्वीकरण के कारण बाजारवादी संस्कृति को बढ़ावा मिला है

इसके समर्थको का मानना है, कि इसके माध्यम से रोजगार को बढ़ावा देकर गरीबी को समाप्त किया जा सकता है वैश्वीकारण की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है :

  1. वैश्वीकरण के फलस्वरूप श्रम बाजार का विश्वस्तर पर विकास हुआ है। सन्न 1965 मे लगभग 7 करोंड़ 50 लाख लोग एक देश से अन्य देश में रोजगार के लिए पहुंचे। वर्तमान मे इनकी संख्या लगभग 14 करोड़ हो गई है।
  2. वैश्वीकरण के कारण संचार साधनों का विकास हुआ है, जिससे लोगो का आपसी सम्पर्क आसान हो गया है। कम्पयूटर और इंटरनेट प्रणाली ने इसमें कांतिकारी परिवर्तन किया है।
  3. वैश्वीकरण के अन्तर्गत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों मे वृद्धि हुई है, जिससे रोजगार में तथा वस्तुओ की कीमतों में वृद्धी आई है।
  4. वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों की संस्कृतियाँ विकसित देशों की संस्कृतियों के अनुसार परिवर्तित है।
  5. वैश्वीकरण के फलस्वरूप उच्च देशों की तकनीक का लाभ विकासशील देशों को भी प्राप्त होने लगा है।
  6. वैश्वीकरण के फलस्वरूप राष्ट्रवाद तथा प्रभुसत्ता जैसी प्रवधारणाओं में कमी आई है, और बहुराष्ट्रीय कम्पनियां सरकार की नीतियों को प्रभावित करती है।

श्रमिकों पर वैश्वीकरण के प्रभाव :

  • वैश्वीकरण का विभिन्न सामाजिक समूहों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। खासतौर पर श्रमिक वर्ग की स्थिति अत्यंत उच्चनीय हो गई है। विश्व की अर्थव्यवस्था एकीकरण होने के कारण मजदूरों की सुरक्षा व उनके कल्याण की भावना प्रभावित हुई है, तथा अब वे पूँजीकरण की शर्तों के अधीन हो गए है। श्रमिकों के लिए बने कानूनों का भी काई महत्व नहीं रह गया है, और वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने श्रमिकों को असहाय स्थिति में ला दिया है।
  • श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन समाप्त की गई है, परन्तु वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण बाजारों में होने वाले परिवर्तन का श्रमिकों की स्थिति पर प्रभाव है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप बडे पैमाने पर बेरोजगारी में वृद्धि हुई है, सामाजिक सुरक्षा में कमी हुई है। और इनका सबसे अधिक प्रभाव श्रमिकों पर पड़ रहा है।
  • विकासशील देशों ने अपने यहां बाहरी पूंजीनिवेश खासतौर पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI ) को बढावा देने के लिए श्रमिक कानूनों के महत्व को कम कर दिया है, तथा श्रम का कोई महत्व नहीं रह गया है। रोजगार सुरक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा के तथ्य की अनदेखी की गई है।
  • वैश्वीकरण प्रक्रिया के सम्बन्ध में यह दावा किया जा रहा था,, कि इससे रोजगार में वृद्धि होगी और वस्तुओं की गुणवत्ता में सुधार होगा; परंतु सच्चाई बिल्कुल इसके विपरित है। भारत जैसे देशों में न तो श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है, और ना ही उनके रोजगार में वृद्धि हुई बल्कि न्यूनतम मजदूरी भी इतनी कम है, कि वे अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते और गरीबी रेखा के नीचे जीवन बिता रहे हैं।
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